मुरली की वो धुन, जो अक्षय आनंद देती थी,
सतबचन बोलके हमें गौरवान्वित करती थी,
देवेन्द्र भी भूतल पे था, गिरीश का भी साथ था,
रोशन सब फिजाएं थी, शिव का आशुतोष था।
आशीष हमें मिला था, तंत्रज्ञान की सीढ़ी चढ़ने का,
हथियार मिला परशु से, और अभिषेक हुआ विचारो का,
चेतन थे हम और सत्य से परिचित थे,
विनयी हमारा स्वभाव, सागर जैसे प्रशस्त थे।
साथ खूब मिला आपका, वहीं हमारी धरोहर हैं,
अभी जीत की चाह हैं, ईश प्रसाद हमारा ध्येय है,
अनय, सेखर योगेश सभी विष्णु के ही रूप है,
आपके वरदान से ही, जिंदगी प्रफुल्लीत है।
अक्षर ही मेरी संपत्ती, आपका प्यार आधार है,
बीते हुए पल याद करता हूं, तो आंखें नम हो जाती हैं
दिल की सुनु या दिमाख की इसी कश्मकश हूँ यारों,
बिन आपके कैसे रह पाऊ, सोचना ही अस्विकार है,
आज बेरोजगार हूं मैं, कुछ काम दिलादो यारों
अकेला महसूस कर रहा हूं, थोड़ा रुबरु हो जाओ यारों।
चाहो तो पिलाऊंगा आपको व्हिस्की या रम,
आकर पास मेरे, एक कप चाय पिलादो यारों।
- सचिन
1 comment:
Nice one Sachin... though v r good frd , but did not knew this aspect of urs ;)
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